तुम राष्ट्र के पांडव हो ! shivam shahi
तुम राष्ट्र के पांडव हो !
shivam shahiतुम औरों की भांति चुन सकते थे श्वेत,
तुमने चुनी रक्त रंजित
पताका!
तुम्हारे पास भी होंठ थे,
चूम सकते थे कोमल अधरों को,
रगड़ लिए होंठ तुमने
गाँव की माटी में सुलगती अंगीठी पर।
जब घूरा फड़फड़ाती मछली की आँखों को,
भंग हुआ तप ब्रह्मा का।
जब चूमा तुमने श्रम बिंदुओं को,
हलचल हुई छीर सागर में।
काटा जो तुमने भुजंग को,
मचल उठा शिव का आसन।
कांपी धरती, कांपा भारत,
जली जब लाल पताका चरम पर।
तुम्ही जप, तुम्ही अन्ना
तुम्हारा भगत, तुम्हारा गांधी
ये राष्ट्र का गौरव है कि
तुम राष्ट्र के पांडव हो !