संस्कार-जीवन का आधार शशांक दुबे
संस्कार-जीवन का आधार
शशांक दुबेअंग्रेज़ी शिक्षा का ढांचा, खड़ा किया मैकाले ने,
जैसे सर पर जूता मारा, लिपटा किसी दुशाले में।
भारत मनीषी बना रहा था, गुरुकल में संस्कारों से,
बना दिया है मशीनों सा अब, शिक्षा के हथियारों से।
उसने सोचा संस्कारों का, धीरे-धीरे हरण करो,
सीधे जड़ से भी मत काटो, धीरे-धीरे क्षरण करो।
जैसे-जैसे अंग्रेज़ी, माथे पर चढ़ती जाएगी,
वैसे-वैसे दास बेड़ियाँ, पैरों में पड़ती जाएगी।
कान्वेंट की भीड़ों से सच, उसका सपना दिखता है,
अपना ही बेटा अब सच में, अंग्रेजों सा दिखता है।
माना की इस दुनिया में, स्थान बड़ा वह पाएगा,
माता-पिता की सेवा का, संस्कार कहाँ से लाएगा।
अच्छी शिक्षा भी दो लेकिन, ऐसा कोई जतन करो,
वह अच्छा इंसान भी बने, ऐसा कोई यतन करो।
वीर शिवा राणा लक्ष्मी सी राह इन्हें दिखाना है,
अपने भारत को फिर से अब विश्वगुरु बनाना है।