स्वप्न परिमल आने को है  aniket sachan

स्वप्न परिमल आने को है

aniket sachan

बस अब तुम न मुँह मोड़ो कि
स्वप्न परिमल आने को है।
 

राहों के लंबे चौराहे पे
हाथ है थामा अब तक तुमने,
अब तक लाखों वैतरणी पे
है पार लगाई नावें हमने,
लड़ लो इन तूफानों से कि
तट भी अब बस आने को है,
बस अब तुम न मुँह मोड़ो कि
स्वप्न परिमल आने को है।
 

वादों से नहीं दिल से पूछो
साथ में जाना क्यों है मेरे,
पूछो सावन की यादों से
क्यों साथ बिताना पतझड़ मेरे,
अभी न छोड़ो धैर्य क्योंकि
साथ मे केशव आने को है,
बस अब तुम न मुँह मोड़ो कि
स्वप्न परिमल आने को है।
 

जब-जब काँटे उलझे मन में
फेंक, निकाल लौ जलाते रहे,
काँटे जब कुछ चुभे तलवों में,
मरहम एक-दूजे के लगाते रहे,
अब न साथ निभाओगी कि
अंत भी मेरा आने को है,
बस अब तुम न मुँह मोड़ो कि
स्वप्न परिमल आने को है।

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