रोते नहीं हैं बच्चे  Kiran Shivhar Dongardive

रोते नहीं हैं बच्चे

Kiran Shivhar Dongardive

गुड़िया की शादी में अब खेलते नहीं हैं बच्चे,
खिलौनोमे झुनझुना चुन हसते नहीं हैं बच्चे।


जाने कहाँ खो गयी मासूमियत इनकी आँखों की,
कि परियों की सुनकर कहानी सोते नहीं हैं बच्चे।


न तितली से लगाव न कलियों से पहचान इनकी,
किसी बाग-बगीचे में फूल बनकर खिलते नहीं हैं बच्चे।


कभी मिट्टी से मैले हुए न पाँव इनके नन्हे-नन्हे,
कभी टिम-टिम करते तारों को गिनते नहीं हैं बच्चे।


कैसी बेरुखी सी दिखती है अब इनके अंदर बाहर,
कि आजकल बारिश मे खुलकर भीगते नहीं हैं बच्चे।


कैसा अकाल आन बसा है आँसुओं का इनके दिल में,
दादा-दादी गुज़र भी जाएँ तो रोते नहीं हैं बच्चे।


कैसे अजीब माहौल के साये आकर बसे दिल में,
अपने होकर भी अपनों को अपनाते नहीं हैं बच्चे।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1067
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com