देश या परदेश Rahul Kumar
देश या परदेश
Rahul Kumarहर कोई जाना चाहता है उस दरिया के पार,
हम भी बचपन में देखते थे सपने दिन रात।
वो दुनिया अच्छी या मेरा वतन सुकुमार,
इस असमंजस में खड़ा, मैं रहा सोचता हर बार,
बस, हर कोई जाना चाहता है उस दरिया के पार।
वहाँ दौलत, आधुनिकता के बीच गोलियों से कटती है रात,
यहाँ भरपूर मेहनत के बाद भी न करते नाईट पिल्स की बात,
फिर भी, हर कोई जाना चाहता है उस दरिया के पार।
शकीरा और वॉकर के गानों में नहीं मिलती है वो बात,
जो सुकून लता और रफी के अल्फ़ाज़ों के है साथ,
लेकिन, हर कोई जाना चाहता है उस दरिया के पार।
रोमियो जूलिएट की मुहब्बत है वहाँ की दास्तान,
हम यहाँ राधा कृष्ण के पवित्र प्रेम को करते याद,
तब भी, हर कोई जाना चाहता है उस दरिया के पार।
उस जगह विज्ञान और तकनीक है सब चीज का आधार,
भारत में योग और आध्यात्म की है हर जगह बात,
इन दोनों का मिलन हो तो बने एक नई मिसाल,
इसलिए जाना है सीखने मुझे विज्ञान उस दरिया के पार।
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प्रस्तुत कविता हमें परदेश की कमियों का भान करवाती है तो साथ ही हमारे देश की विशेषता को भी बताती है। और अखिरी नज्म पूूूरे कविता का सार है कि देश में इतना कुछ होते हुए भी क्यों बाहर जाना होता है। हमारे देश में आध्यात्मिक ज्ञान की धरोहर है तो पश्चिम मे विज्ञान और तकनीक की। दोनों का मिलन ही एक समाधान हो सकता है विश्व के संतुलित विकास का।