दामिनी  Amit Kumar Verma

दामिनी

Amit Kumar Verma

औरत तेरी कहानी, तू ही शारदा तू ही भवानी,
रत्ती भर बात इस जग ने न जानी।
 

तुझे पूजकर किया तेरा सृजन,
तेरे साथ इंसानियत का भी कर दिया विसर्जन।
 

कभी सरे आम उछाला, तो कभी नकाब डाला,
औरत तेरी इज़्ज़त को कृष्ण ने कैसे संभाला।
 

महाभारत में द्रौपदी, या हो माता जानकी,
तेरी इज़्ज़त की परीक्षा अग्नी से ये माँगती।
 

सड़कों पर नीलम कर दिया सृष्टि के हथियार को,
हाथ मारकर कर दिया मैला दुर्गा के ही अवतार को।
 

काला मंजर याद है, मुझे काला दिन वो याद है,
जब वो गलियों में घसीटी गई,
लोहे के सरिये से थी वो पीटी गई।
लाल रंग का लहू था उसका,
रो रहा रहा था हर कतरा जिसका।
 

दरिंदो की हैवानियत के आगे कोशिश उसकी बेकार थी,
औरत आज फ़िर तेरी इज़्ज़त तार-तार थी।
 

न्याय की कोख में वो नीच अभी आबाद है,
काला मंजर याद है, मूझे काला दिन वो याद है।
 

तेरी इज़्ज़त उपहास की उद्गामिनी ना बन जाए,
काली रात के काल में एक दामिनी ना बन जाए।
 

अभागी असहाय उस अरुणा को हम देख चुके थे,
न्याय के साथ शायद करुणा भी बेच चुके थे।
 

बसों और लोकल में तुझे छूने का बहाना चाहिए,
सारे आम तेरी इज़्ज़त लूटने का ठिकाना इन्हें चाहिये।
 

आँख मूंद कर देख रहा ये समाज तेरा दोषी है,
देख अदालत में तेरी इज़्ज़त की हुई आज पेशी है।
 

सीने पे मारा या उधेड़ा तेरा पहना चीर है,
जनसभा में हाथ फेरते देख ये परमवीर हैं।
 

देख के हश्र तेरा, दुर्गा की शक्ति भी रोई थी,
बलात्कार के चादर में तेरी भक्ति कहीं खोई थी।
 

तेरी पूजा करने वाले तेरे ही कातिल हो गए,
मूक बैठे तेरे दर्शक उस पाप में शामिल हो गए।
 

तेरी इज़्ज़त उपहास की उद्गामिनी न बन जाए,
काली रात की काल में एक दामिनी न बन जाए।
काली रात की काल में एक दामिनी न बन जाए।

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