गरीब की आवाज़  Vinay Kumar Kushwaha

गरीब की आवाज़

Vinay Kumar Kushwaha

क्या मोल समझते हो तुम,
एक गरीब की थाली का।
जी तोड़ मेहनत करता,
जीता जीवन बदहाली का।
 

तुम एक निवाला दे नहीं सकते,
करते हो बातें खुशहाली का।
मीठे बोल न बोले कभी,
हर लफ्ज होता तेरा गाली का।
 

अश्कों से भीगे हैं नैन,
तुम दर्द क्या जानो एक माली का।
हर दिन उसका एक जैसा है,
चाहे दिन होली का हो या हो दिन दिवाली का।
 

अलग कर सकते नहीं अपने से मुझको,
ये रिश्ता है वृक्ष और डाली का।
नर से ही तो नारायण हैं,
फिर करोगे क्या कुर्सी खाली का।

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