वह सीधा पेड़ शशांक दुबे
वह सीधा पेड़
शशांक दुबेसीधा पेड़, आसमाँ की ऊँचाई छूता सा,
टेढ़े-मेढ़े पेड़ों के बीच, कुछ इठलाता सा।
अपने सीधेपन से, सम्मान पाता सा,
स्वाभिमान से लबरेज़, फक्कड़ सा।
स्वार्थवश आज, उसे छाँट दिया गया,
टेड़े-मेढ़ों को छोड़, उसे काट दिया गया।
बाकी पेड़, मन ही मन मुस्कुरा रहे,
उसकी शहीदी का, जश्न मना रहे।
सब अपने ,टेढ़ेपन पर इतरा रहे,
उसके सीधेपन का, तंज बना रहे।
क्षुद्र कामनाओं से, उन्हें बाँट दिया गया,
टेड़ेमेढ़ों को छोड़, उसे काट दिया गया।
सीधा पेड़ खुश है, अपनी क़ुर्बानी से,
वो दुःखी नहीं, औरों की नादानी से।
वो अंजान नहीं, दुनिया की बेमानी से,
वो प्रेरित है बस, दधीची की कहानी से।
गर्वित है औरों हेतु, उसे छाँट दिया गया,
लोकहितार्थ फिर, उसे काट दिया गया।