ख़ास प्यार Aanchal Singh
ख़ास प्यार
Aanchal Singhजी ये लीजिये,
आज तो मुँह भी फेर लिया।
कल तक तो घृणा मन में ही छुपी थी
पर आज,
आज मेरे साए को भी इस समाज से दरकिनार कर दिया।
हाँ क्योंकि इनकी भाषा में
मैं किसी से भी प्यार करने वाली हूँ,
किसी के भी प्रति आकर्षित होने वाली हूँ।
हाँ क्योंकि, मैं वो हूँ जो इनके पैमाने पर खरी नहीं उतरती।
पर ये तो बेख़बर हैं,
हाँ ये बेख़बर हैं कि मेरे तो प्यार के मायने ही अलग हैं।
मेरा प्यार किसी एक पुरुष
या किसी भी एक लिंग तक सीमित नहीं,
ना ही ये सीमित है, किसी दैहिक प्रेम तक।
आत्मिक है,
जी मेरा प्यार आत्मिक है, स्वानुभूतिक है, अनन्त है।
जो किसी ख्वाबिदा पल की तरह छूमंतर नहीं होता,
ना ही होता है ये समय का पाबंद।
जी मेरा प्यार तो क़ुरबत है बस
जो किसी के भी प्रति
कभी भी हो सकता है।
तो फिर चाहे वे मुझे
अपने जैसा ना माने
वे मुझे आम ना माने
हाँ बेशक, क्योंकि मेरा प्यार आम नहीं।
ख़ास हूँ मैं, और मेरा प्यार भी
जो सीमित नहीं है, किसी भी एक लिंग तक।
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यह कविता समाज में रह रहे एक ख़ास किस्म के व्यक्तियों के लिए है, जिन्हें आमतौर पर "pensexsual" कहा जाता है, ऐसे व्यक्ति किसी भी लिंग के प्रति आकर्षित होने वाले होते हैं। परंतु समाज में जिस तरह इन व्यक्तियों को देखा जाता है, जिस तरह उनके साथ व्यवहार किया जाता है, यह आज बड़ी सामाजिक समस्या है। यह कविता मैंने उनकी अनुभूति पर लिखी है, कि वह कैसा महसूस करते हैं परंतु फिर भी वह जीते हैं। क्योंकि उनका "pensexual" होना प्राकृतिक है, इसमें उनका कोई दोष नहीं है।