पत्नी  RATNA PANDEY

पत्नी

RATNA PANDEY

आज मुझे ऐसा लगा मानो जैसे चाँद निकल आया है,
घूंघट जब खोला मैंने चंद्रमुखी को पाया है।
हिरणी जैसी चंचल कजरारी आँखों से वह, रात को घायल कर देती है,
मांग जब सिन्दूर से भर लेती है, ऊषा की लालिमा सी दिखती है।


कंगन पायल जब खनके उसके, कानों की ध्वनि में फुहार आ जाती है,
चलती है जब ठुमक-ठुमक के, नागिन सी बलखाती है।
बालों को जब झटकाती है, सावन की घटा लहराती है,
रंग-बिरंगी साड़ी में वह, इंद्रधनुष सी लगती है।


माथे की घुंघराली लट, सोने पर सुहागा बन जाती है,
ठोड़ी पर काला तिल नज़र का टीका है,
यह नज़राना ऊपरवाले ने उसे भेंटा है।
मीठी बोली कोयल जैसी, घर में तरंग भर देती है,
नन्हीं किलकारियों से, घर आंगन भर देती है।


कोई दोष नहीं है उसमें, मुझे बहुत वो भाती है,
माता-पिता भाई बहन को, प्यार की माला में पिरोकर रखती है,
माला कभी बिखर ना जाए, इसका ध्यान भी रखती है,
हाँ वह मेरी पत्नी है, चंद्रमुखी सी लगती है।


सौंदर्य और प्यार का ऐसा समन्वय और कहाँ मिल पाएगा,
प्यार भरी नज़रों से देखो, तुम्हें घर में ही मिल जाएगा,
प्यार भरी नज़रों से देखो, तुम्हें घर में ही मिल जाएगा।

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