अधूरी ख्वाहिश RATNA PANDEY
अधूरी ख्वाहिश
RATNA PANDEYरहीं कुछ जिम्मेदारियाँ ऐसी,
कि कागज़ कलम से नाता टूट गया मेरा।
चाहती थी मैं समाज के लिये कुछ कर पाऊँ,
अपनी कोशिशों से कुछ परिवर्तन ला पाऊँ।
एक शालीन समाज को सपनों में देखती थी मैं,
देखकर कुरीतियाँ समाज की दम घुट रहा था मेरा।
सूख रहा है वृक्ष पानी माँग रहा है,
अभी वह जीना चाह रहा है,
कहाँ है उसका माली जानना चाह रहा है।
तमन्ना है कि फूटे विचारों की कोई डाली लिख डालूँ सभी पन्ने,
अभी तक थे जो सब खाली।
माली ने बड़े ही प्यार से रखा था उसे दिल में,
पड़ गया था सूखा, मगर वह पानी डाल रहा था उसमें।
कमज़ोर था शरीर किन्तु कलम में थी बड़ी ताकत,
चाहती थी करूँ समाज के लिए कुछ प्रेरणादायक।
चाहता था माली भी, कि यह फिर से फले फूले,
कर रहा था कोशिश, वह उसे ऊपर उठाने की।
मिल गया फिर वृक्ष को वह साथ, जिसे वह ढूँढ रहा था,
हो गया ज़िंदा जो पहले मर रहा था।
आ गई फिर हिम्मत अधूरी ख्वाहिश पूरी करने की,
समाज की कुरीतियों को दूर करने की।
ऐ ख़ुदा दे मेरी कलम को वज़न इतना,
कि भटके को रास्ता दिखा सकूँ मैं,
ह्रदय में परिवर्तन ला सकूँ मैं।
उठा लिया कागज़ कलम से फ़िर से रिश्ता जोड़ लिया मैंने,
हर पन्ने पर लिखा ऐसा, कि आईना दिखा दिया मैंने।
कुछ तो पढ़ कर भूल गए,
कुछ अजनबी सी तलाश में जुट गए,
कुछ शर्म के मारे डूब गए और कुछ आईने तो ऐसे थे,
कि प्रतिबिम्ब देखकर खुदका,
वह चकनाचूर हो गए।
होती है कवि की वह कलम खुशकिस्मत जो समाज में सुधार करती है,
और अपनी कविता को नया आयाम देती है।
लगा दूँगी मैं भी जान अपनी,
कि मेरी कलम से वह मोती निकलें,
जो एकता, अखंडता, समानता और
धर्मनिरपेक्षता की माला बनकर निकलें।
हो रहा है जो पाप जहाँ में,
उसे ख़त्म करना होगा।
शस्त्र से नहीं, समस्या को अभिव्यक्ति से हल करना होगा,
शस्त्र से नहीं, समस्या को अभिव्यक्ति से हल करना होगा
यही उद्देश्य है मेरा, यही संकल्प है मेरा।
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मेरी यह कविता एक ऐसी कवयित्री के मनोभावों को व्यक्त करती है जो समाज में परिवर्तन लाने के लिए बहुत कुछ करना चाहती है, परन्तु सामाजिक जिम्मेदारियों और बन्धनों की वजह से उसे अवसर ना मिल पाया। फिर उसे जैसे ही अवसर मिला उसने अपनी कलम उठा ली और समाज की कुरीतियों को अपनी कविताओं के माध्यम से उजागर करने की कोशिश में जुट गई।