आज भी वो स्वर गूंजते हैं मेरे इन कानों में Utkarsh Tripathi
आज भी वो स्वर गूंजते हैं मेरे इन कानों में
Utkarsh Tripathiआज जगी राष्ट्र भक्ति जैसे राष्ट्र गानों में,
आज भी वो स्वर गूंजते हैं मेरे इन कानों में।
कुछ यूँ लिखूँ कि यह उद्घोष हो जाए,
हर द्रोहियों पर जनता को रोष आ जाए।
युवा क्रांति की ललकार गूंजे यूँ गगन में कि,
हर युवा शेखर, भगत और बोस हो जाए।
आज भी भौहें तनी हैं, उनके अपमानों से,
आज भी वो स्वर गूंजते हैं मेरे इन कानों में।
पर राष्ट्र का परिवेश कैसा आज दूषित हो रहा,
राष्ट्र के इस गर्भगृह में कौन पोषित हो रहा?
काटने भारत को दौड़ी अपनी ही तलवार है,
भारत तेरे टुकड़े होंगे गूंजती ललकार है।
हम ऐब में बैठे रहे झूठी सी शानों में,
आज भी वो स्वर गूंजते हैं मेरे इन कानों में।
देश की गरिमा जिन्होंने की जार-जार है,
साँस उनकी चल रही सब शर्मसार हैं।
आजमा लिए हैं सब शांति के पैंतरे,
वक्त की ज़रुरत अब गांडीव की टंकार है।
दंभ भरने से कुछ न होगा,
चीत्कार करना ही पड़ेगा।
दूर करके इनको आलिंगन से,
धिक्कार करना ही पड़ेगा।
फर्क दिखता नहीं है कुछ इन शैतानों में,
आज भी वो स्वर गूंजते हैं मेरे इन कानों में।
शोषण ही ईमान का आज परिणाम है,
कैद और कारावास ही सत्य का इनाम है।
न्याय मृत्युशैय्या पर कराहती पड़ी है,
न्याय का नाम तो अब बस इंतकाम है।
मानवता है मृत पड़ी, बंगले मकानों में,
आज भी वो स्वर गूंजते हैं मेरे इन कानों में।
क्रांति सूली पर है चढ़ी, सिसकियाँ है भर रही,
सौहार्द की भावना तो श्मशान में मर रही।
क्रांति के जननायक ही जब सो रहे आराम से,
चाणक्य ने ही जब बेच दिए चरित्र ऊँचे दाम से।
है कुहासा अब चतुर्दिक दृष्टि आसमानों में,
आज भी वो स्वर गूंजते हैं मेरे इन कानों में।
अमृत सलिला गंगा से भी अब तो विषपान है,
समस्याओं में गुमशुदा समाधान है।
मर रहे हैं भूख से हर हम में पांचवे,
भूख की चीख में ही क्या भारत महान है?
दिल तुष्ट होता है नहीं अब झूठे फ़सानों में,
आज भी वो स्वर गूंजते हैं मेरे इन कानों में।
बाँटता मैं फिर रहा आज अपना ज्ञान हूँ,
लिख रहा अब आगे मैं कुछ समाधान हूँ।
सुधर सकते हैं सभी, सिर्फ दंड के भय से,
ख़त्म होगा अंधकार सिर्फ मार्तण्ड के उदय से।
मानता हूँ समस्याएँ बहुत ही विकराल हैं,
पर हम सबमे एक जोश है, एक ज्वाल है।
प्रकृति प्रद्दत्त गुणों से उपकार की हम सीख लेंगे,
उपभोग करने की जगह उपयोग करना सीख लेंगे।
उत्साह का संचार करेंगे हम रक्तवानों में,
आज भी वो स्वर गूंजते हैं मेरे इन कानों में।
गूंजते स्वर कौन हैं मैं ये बताता हूँ,
राष्ट्र भक्ति के चरम को मैं दिखता हूँ।
था सुना मैंने कभी बिस्मिल के गान को,
सरफ़रोशी के तम्मना के स्वाभिमान को।
बस स्वाभिमान है जगाना सबकी जानों में,
आज भी वो स्वर गूंजते हैं मेरे इन कानों में।
बरसा दो प्रभु राष्ट्र भक्ति बस वरदानों में,
आज भी वो स्वर गूंजते हैं मेरे इन गानों में।
