तुम मिन्नत का धागा हो Sahil Verma
तुम मिन्नत का धागा हो
Sahil Vermaमासूम हो जैसे दादी-बाबा की दुआ,
भोली हो, सच्ची हो
बच्चों की गलतियाँ जितनी
तुम्हारी बातें, तर्क, नयापन लिए
दुष्यंत, धूमिल, नागार्जुन की कविताओं सी हैं
जिन्हें मैं हमेशा पढ़ना, सुनना, समझना चाहता हूँ।
सरल हो, ए बी सी डी जितनी
शांत हो, जैसे बनारस का अस्सी घाट।
गुस्सा तुममे बस उतना है
जितनी मुम्बई की धीमी बारिश
जो अच्छा लगता है।
अपने घर के लिए तुम
कोसों दूर मंदिर में बंधे
मिन्नत पूरी करने वाले धागे सी हो,
जिसमे भरोसा, धैर्य, उम्मीद बँँधी हैं।
तुम्हारा एक साथ ढेर सारी बातें कर जाना
उन बातों का भाव चेहरे पर ला लेना,
कभी आँखों में नीलापन, चमक, तो कभी गुस्सा,
जैसे किसी कलाकार का अपनी बात कहना।
तुम सबके लिए, सवालिया
अनुच्छेद 370 हो सकती हो,
लेकिन तुम्हारा स्वभाव साफ़ है
संविधान प्रस्तावना की तरह।
तुम्हारे गुण उसमे लिखे शब्दों से आदर्श हैं
जिनमें परिवर्तन होना
अनुच्छेद 368 जितना जटिल है,
यदि बदलाव हुआ तो मूल हमेशा सुरक्षित रहेगा।
मेरे लिए तुम सम्माननीय हो
जितनी संविधान की प्रस्तावना,
मजबूत हो बोनसाई पौधे सी
जो हिरोशिमा में एटॉमिक बम की
चोट से बच खड़े होने की हिम्मत रखता है।
तुम्हारी ये बात, मैं कोशिश करूंगी
तुम तभी कहती हो
जब कोई काम तुम कर सकती हो
जब कहती हो, करती भी हो
जो नहीं आता उसे स्वीकार कर लेना
तुम्हे पूर्ण बनाता है।
मन में अनगिनत विचार लिए
इंदिरा सी गूंगी गुड़िया, तुम
अपने अद्भुत फैसलों से
कभी भी आश्चर्यचकित कर सकती हो।
तुम क्षमतावान हो,
खोज लोगी नया रास्ता,
ढूँढ लोगी सपनों का महाद्वीप
जैसे खोजा था वास्कोडिगामा ने भारत।
हमारा रिश्ता गणित के एक्स है,
तमाम कोशिश के बाद भी अनसुलझा,
तुम्हें खबर हो इस रिश्ते की तो बताना
हालाँकि मैं हमेशा चाहता हूँ
तुम सफलता के शिखर पर पहुँचो,
मैं तुम्हें देख कर मुस्कुराऊँगा,
वहीं से तुम बस देख कर मुस्कुरा देना
फिर मैं अपने रास्ते और तुम अपने।