जब तुम आती हो !  Devendra Raj Suthar

जब तुम आती हो !

Devendra Raj Suthar

जब तुम आती हो !
यादों के श्याम मेघों के साथ
तब आने लगती है
दिल की जमीन से
तुम्हारी तन की भीनी खुश्बू।
दूर तक सन्नाटों में
सुप्त हरेक कण में
होने लगती है हलचल
खामोश फिजाओं में
सुमधुर मयूर के अलाप का
होने लगता है गुंजन
जब तुम आती हो !
स्वप्न नगरी में
यकायक !
तुम्हारे आने की आहट से
सहम उठता हूं मैं!
खोलता हूँ घर का किवाड़
देखता हूँ दूर तलक तक
नजर आती है
रोशनी की पतली किरण
और रोने की आवाज
जब तुम आती हो !
सभ्य समाज की
समस्त लक्षमण रेखाओं को
लांघ कर
और अपने को आजाद कर
बंधने के लिए
प्रेम की जंजीरों में
तब तुम्हे आते देख
कोई जवान बच्चा
जोर-जोर से
लगता है हंसने।

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