कवि सम्मेलन शशांक दुबे
कवि सम्मेलन
शशांक दुबे"जकल बिके बस वही दिखे"
हर एक मंच पर, एक ही कविता
शब्द विहीन हुई, साहित्य सरिता?
कुछ गपशप और लतीफ़े स्तरहीन
डेढ़ घंटे में बस, कविता हैं दो तीन।
प्रायोजित नोक-झोंक है बेफ़िज़ूल
पढ़ने का तरीका बड़ा ऊल-जलूल।
मनोरंजन-व्यवसाय का मिलन हो गया
आपस में कवि मिले सम्मेलन हो गया।