प्रेम SHUBHAM DWIVEDI
प्रेम
SHUBHAM DWIVEDIप्रेम जीवित है प्रकृति के हर अंश में,
हर एक जीव के हाँ हर एक वंश में।
प्रेम सौंदर्य है अखिल संसार का,
प्रेम ईश्वर का धरती को उपहार सा।
प्रेम है सत्व में, तम में भी, रज में है,
प्रेम है द्यौ में, पाताल में, ब्रज में है।
प्रेम है नम्रता तो है दृढ़ता कभी,
है कभी मोह तो प्रेम ममता कभी।
प्रेम है सारथी कृष्ण के गीत का,
प्रेम ही है धुरी धर्म की जीत का।
प्रेम संकल्प है विश्व-निर्माण का,
प्रेम आधार है मनुज - उत्थान का।
प्रेम संगीत मीरा के मन का वो है,
प्रेम व्यक्तित्व राधा के जीवन का है।
प्रेम है रूक्मणी का मिलन कृष्ण से,
'परसों आऊंगा' वो जो वहन ना हुआ,
प्रेम है गोपियों को वचन कृष्ण से।