एक सैनिक की अंतिम इच्छा RATNA PANDEY
एक सैनिक की अंतिम इच्छा
RATNA PANDEYजिया देश के लिए, लड़ा देश के लिए, मरूँगा भी देश के लिए ।
ऐ ख़ुदा माँग रहा हूँ मैं, चंद सांसों की मोहलत दे दे।
कर सकूँ कुछ और मैं, इतनी इबादत सुन ले ।/
बूढ़ी माँ, जवान बहन और नई नवेली दुल्हन को छोड़ कर आया हूँ।
नहीं दे सका कभी वक़्त उन्हें मैं,
अंतिम समय और अंतिम सांसें उनके साथ बिताना चाहता हूँ।
अपनी पत्नी से मिलना चाहता हूँ,
पल रहा है अंश मेरा उसकी कोख में पनप रहा है।
उसके पेट पर सर रखकर, धड़कनें महसूस करना चाहता हूँ।
देख नहीं सकता उसको, पर स्पर्श करना चाहता हूँ।
नहीं है वक़्त इतना कि उससे मिल सकूँ मैं।
जवान करके उसे, फ़ौज में भर्ती कर सकूँ मैं।
नहीं देता ख़ुदा उधार, वर्ना सांसें मांग लेता मैं,
और सरहद पर अपने बेटे को भी साथ लाता मैं,
पर यह मुमकिन नहीं।
किन्तु वह लहू है मेरा, मेरी आवाज़ पहचान लेगा,
और जो मैं कहूँगा उसे मान लेगा।
उसे भी यही शिक्षा देना चाहता हूँ कि देश के लिए जीना है,
देश के लिए लड़ना है और देश के लिए मरना है।
जा रहा हूँ मैं, अब साँसें टूट रही हैं,
जितनी चाह थी उतना कर ना पाया मैं,
तमन्ना दिल में लिए जा रहा हूँ।
देश का जो कर्ज़ है मुझ पर,
वो कर्ज़ चुकाना तू, यह फर्ज़ है तेरा,
अपने देश को बचाना तू, ये धर्म है तेरा।
अपने कर्ज़ और अपने फर्ज़ को निभाएगा,
तभी तू सच्चा वीर हिंदुस्तानी कहलाएगा,
और तभी मेरी रूह को सुकून मिल पाएगा।
है यह एक सैनिक की अंतिम इच्छा,
कि मेरे वंश के ख़ून का हर एक कतरा,
हो न्योछावर मातृभूमि सिर्फ़ तेरे लिए।
मेरे वंश के ख़ून का हर एक कतरा,
हो न्योछावर मातृभूमि सिर्फ़ तेरे लिए।
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सदियों से देश पर अपनी जान न्यौछावर करने वाले वीर सैनिकों का दिल अपने अंतिम समय में भी सदैव अपने देश के लिये धड़कता है। उसे अपनी मौत का अफ़सोस सिर्फ इसलिए होता है कि वह देश के लिए और भी कुछ करना चाहता है लेकिन वक़्त ने उसे यह मौका नहीं दिया। इसलिये इस अधूरे काम को पूरा करने के लिए उसे अपने बेटे का इंतज़ार है जो बड़ा होकर देश के काम आ सके। मेरी यह कविता इसी बात पर आधारित है।