ज़िन्दगी :एक रंगमंच  RAHUL KUMAR BHARATI

ज़िन्दगी :एक रंगमंच

RAHUL KUMAR BHARATI

ज़िन्दगी के रंगमंच की कुछ ऐसी कहानी,
फिसलन में था बचपन खतरे में जवानी।
किरदार सभी झूठे अभिनय का बस तमाशा,
यही है हक़ीक़त, यही है ज़िंदगानी।
 

लगा रहता है मंच पर सभी का आना-जाना,
कौन कितना है अपना किसी ने न पहचाना।
चलाते नाव अश्क पर जैसे दरिया का पानी,
यही है हक़ीक़त, यही है ज़िंदगानी।
 

बनाते हैं आशियाने दिल के कोमल नगर में,
फिर बदलते उसी को वीरान खंडहर में।
यही दस्तूर इनका यही इनकी कहानी,
यही है हक़ीक़त, यही है ज़िंदगानी।
 

एक दुनिया ऐसी भी जो है मंच नीचे,
वहीं है शराफत, उन्ही से ही सीखे।
सदा खुश रहोगे सुनो दोस्त-जानी,
यही है हक़ीक़त, यही है ज़िंदगानी।

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