बसंत का आगमन  B Seshadri "Anand"

बसंत का आगमन

B Seshadri "Anand"

आगमन बसंत का, सबके मन को भा गया,
पुष्पों की महक से, सबको है महका गया।
 

तितलियाँ आई हैं, अब फूलों को चूमने,
भ्रमर भी लग गए, अब बिना वजह घूमने।
विहगों का चहकना, सबको है हर्षा गया,
आगमन बसंत का, सबके मन को भा गया।
 

नर और नारी क्या, अब सभी पर खुमार है,
बह रही चहुँओर, प्रीत की ही बयार है।
प्रीत की बयार का, नशा सभी पर छा गया,
आगमन बसंत का, सबके मन को भा गया।
 

पुष्पों के बोझ से, झुकी हुई हैं डालियाँ,
दानों से अब सभी, भरी हुई हैं बालियाँ।
खुशियों के रंग यह, जीवन में बिखरा गया,
आगमन बसंत का, सबके मन को भा गया।
 

काश ! यह बसंत तो महके यूँ हर रोज ही,
फिर तो हम सभी की, होगी हरदम मौज ही।
अधरों पर मुस्कान, यह सबके बिखरा गया,
आगमन बसंत का, सबके मन को भा गया।

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