चेहरे की किताब शशांक दुबे
चेहरे की किताब
शशांक दुबेआओ तुम्हें चेहरे की किताब दिखाता हूँ,
एक चेहरे पर कई चेहरे लगे मैं पाता हूँ।
कई अजनबी यहाँ हैं अपने से,
अपने हो गए हैं बस सपने से।
झूठी हँसी की डीपी लगा,
थोड़े से सच्चे-झूठे मनुहार जुटाता हूँ,
एक चेहरे पर कई चेहरे लगे मैं पाता हूँ।
लाइक, कमेंट की आशा में,
शेयर होने की प्रत्याशा में,
कोई पूछता था कुछ जवाब न देता था।
पल-पल के हाल अब खुद ही बताता हूँ,
एक चेहरे पर कई चेहरे लगे मैं पाता हूँ।
वास्तविकता छोड़ काल्पनिक दुनिया में,
सच्चे झूठे अवसाद की दुनिया में,
कई दुश्मनों और दोस्तों से घिरा मैं पाता हूँ,
एक चेहरे पर कई चेहरे लगे मैं पाता हूँ,
आओ तुम्हें चेहरे की किताब दिखाता हूँ।
(फेसबुक के जन्मदिवस पर)
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