पॉलिथीन हटाओ जीवन बचाओ  SATISH KUMAR AGARWAL

पॉलिथीन हटाओ जीवन बचाओ

SATISH KUMAR AGARWAL

पॉलिथीन हटाओ जीवन बचाओ
अगर जीना चाहते हो जिन्दगी भरपूर,
तो कर दो इस पोलिथिन को अपनी दुनिया से दूर,
क्योंकि यह वो राक्षस है जो अमर है,
पर अमरत्व के नाम पर एक बड़ा धब्बा है।
 

यह पॉलिथीन इस तरह से ज़मीन में रुकता है,
इसकी धमनियों को जाम कर देता है,
जब धमनियों से जल रुपी खून ही नहीं बहेगा,
तो क्या इन्सान इस धरती पर जी पाएगा?
 

हमारी माता जैसी गाय और अन्य जीव जंतु,
जब इसको खा खाकर मरेंगे, तो क्या हम यहाँ जी पाएँगे?
ज़रा एक बार इसको खाकर तो देखो,
तभी तुम असली मंजर समझ पाओगे।
 

जब धमनियों में थोड़ा सा ही ब्लाकेज हो जाता है,
तब पता नहीं कहाँ-2, ‘एम्स’ या की ‘एस्कॉर्ट्स’,
या फिर अमेरिका और इंग्लैड की याद आती है,
कभी सोचा है आपने इन उपर लिखे जीवों का क्या होगा ?
 

कभी सोचा है कि अगर दुनिया से दूध गायब हो जाएगा,
तो क्या हम और यह सृष्टि यहाँ पर ज़िंदा रह पाएगी?
इस मॉडर्न ज़माने में भी, क्या दूध के बिना जिया जा सकता है?
हालाँकि दूध मिलते हुए भी, नकली दूध की भरमार है।
 

कोई यूरिया डालता है, तो कोई सोडे से बनाता है,
जब दूध खत्म हो जाएगा, कभी सोचा है क्या हो जाएगा?
नकली दूध पर इतना बबेला मचाते हो,
इसके खत्म होने पर, क्या इसी नकली दूध पर जियोगे?
 

पता नहीं आज ज़माना अणुयुग का है,
आज का साइन्सदान, शायद दूध का विक्लप ही ढूँढ पाए,
तब गाय भैसों की जरुरत ही नहीं पड़ेगी,
पर क्या कृष्ण के इस देश में, वो दिन भी देखना पड़ेगा।
 

जब हर तरफ वो माँ जैसी गाय और भैंस इत्यादि,
गलियों में तड़पते और मरते नज़र आएगें?
अरे हाय री किस्मत, अभी भी देर नहीं हुई है,
ऐ भारतवासी संभल जा, नहीं तो बड़ी देर हो जएगी।
 

और तुमको पछताने का समय भी नहीं मिलेगा,
अपने लिए न सही, अपने बच्चों के बारे में तो सोच,
उनके बारे में सोचोगे, तभी समझ पाओगे,
और इस राक्षसनुमा पॉलिथीन से दूर जा पाओगे।
 

सिर्फ अपने बच्चे ही नहीं, इस देश को और दुनिया को,
विनाश के कगार से वापिस ला पाओगे,
तुम अपने स्तर पर इसका इस्तेमाल करना छोड़ दो,
बाकी सब अपने-आप ही हो जाएगा।
 

और तुम्हें पता भी नहीं चलेगा, कुछ ही समय में,
पॉलिथीन नाम के राक्षस को, लोग इस क़दर भूल जाएँगे।
दशहरे की तरह ही, लोग इस पॉलिथीन के पुतले जलाएँगे,
और अपने-आप को धन्य-धान्य समझेंगे।
 

राम की तरह ही इस रावण को मार कर
अपनी भावी पीड़ी को इस राक्षस से बचाएँगे।
और हर बरस एक मेला सा लगेगा,
कहीं कोई पॉलिथीन, खोजने से भी नहीं मिलेगा।
 

लोग घास-फूस से, उसके पुतले बनाएँगे,
और खूब मज़े ले लेके उन्हें जलाएँगे।
खूब खाओ, खुश रहो और खेल ही खेल में,
इस पॉलिथीन रुपी राक्षस को भी मार पाओ।
फिर मिलेंगे ज़रुर, इसी इच्छा से विदा लेता हूँ,
अच्छा चलता हूँ, सिर्फ अभी के लिए चलता हूँ।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
3496
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com