कभी तो सच देखो Saurabh Awasthi
कभी तो सच देखो
Saurabh Awasthiग़ज़लें, किस्से, कहानियाँ छोड़ो,
कभी सच में चाँद तो देखो,
कभी फुटपाथ पे सो के,
खुला आसमान तो देखो।
कभी हुंडई-होंडा छोड़ो,
सड़कें वीरान तो देखो,
कभी हाथ मिला लो उससे भी,
आईने में शख्स अनजान जो देखो।
कभी आँखों से भी देखो,
बंद करो कान तो देखो,
कभी क ख ग घ बोलो,
बची है क्या ज़बान तो देखो।
कभी सच्चाई को समझो,
गीता-कुरान तो देखो,
जो भगवानों को बेचे,
वो शैतान तो देखो।
अब शब्दों की वाह-वाह छोड़ो,
मेरे अरमान तो देखो,
कभी मंदिर-मस्जिद छोड़ो,
खुद में इंसान तो देखो।
अपने विचार साझा करें
आज के समय में हम बस वही देखते हैं जो हमें दिखाया जाता है। हमें अपना नज़रिया बदलने की जरूरत है। शायद हम अपनी ज़िंदगी में इतने उलझे हुए हैं कि वो सब नहीं देख पाते जो सच में घटित होता है। कोई भी निर्णय लेने से पहले अपनी सोच, अपना नजरिया और हर चीज़ की गहराई तक जाँच जरूरी है। भावनाओं में बह कर लिए गए निर्णय अक्सर गलत साबित होते हैं।