दिव्यांग हो तुम शशांक दुबे
दिव्यांग हो तुम
शशांक दुबेन्यूनांग नहीं,
विकलांग नहीं
अनुपम कृति,
दिव्यांग हो तुम।
सूरदास की तुम हो कविता,
रविन्द्र जैन की संगीत सरिता,
सुधा चंद्रन की नृत्यकला से,
सर्वगुणों की तुम हो संहिता।
अरुणिमा सी ऊँची
छलांग हो तुम,
विकलांग नहीं
दिव्यांग हो तुम।
थमना नहीं कभी,
जमना नहीं कहीं,
रुकना कभी नहीं,
झुकना कहीं नहीं।
अल्पांग नहीं,
सर्वांग हो तुम,
विकलांग नहीं
दिव्यांग हो तुम।
