रोटी VIKAS UPAMANYU
रोटी
VIKAS UPAMANYUयाद आई मुझे आज वो रोटी,
जिसे न देखकर मेरी आँखे रोतीं।
देख जिसे खुशी से पागल होता था मेरा मन,
अब वो मेरे नसीब में नहीं,
पर छुपी है अभी कहीं मेरे अंतर्मन।
वो उसके हाथों की रोटी,
जिससे नहीं भरता था मेरा मन,
कोई तो बताए है कहाँ वो रोटी,
जिसके दर्शन मात्र से खिल उठता था मेरा तन।
याद आई मुझे आज वो रोटी,
जिसे न देखकर मेरी आँखे रोतीं।
बस कट रहा जीवन
उस रोटी की तलाश में,
भूल चुका हूँ, भटक चुका हूँ अपना पथ
उस रोटी की तलाश में।
खुशी में भी अब नम हो जाती मेरी आँखे,
टूट चुकी है, मेरे वृक्ष की वो शाखें।
तलाश अमर है मेरी,
मिलेगी मुझको मेरे नसीब की रोटी,
जो नहीं थी मेरी,
वो मेरे पास कैसे होती।
याद आई मुझे आज वो रोटी,
जिसे न देखकर मेरी आँखे रोतीं।