मेरा जिगरी यार दुपट्टा Ravi Panwar
मेरा जिगरी यार दुपट्टा
Ravi Panwarआया कितनी बार दुपट्टा,
मेरा जिगरी यार दुपट्टा।
माँ ने लपेटा, जब सर्दी ने घेरा,
पेड़ो पर झूला था, इसी में बचपन मेरा,
मेरे मुँह को पोछने,
आया कितनी बार दुपट्टा,
मेरा जिगरी यार दुपट्टा।
फिर मिला मुझको यौवन के किनारे,
मुस्कुरा रहा था उन कंधो के सहारे,
लाल हरा गुलाबी नीला,
रंग बिरंगा सुनहरा पीला,
लिपटा मेरे चेहरे से कितनी बार दुपट्टा,
मेरा जिगरी यार दुपट्टा।
आया पतझड़ का समय निराला,
पत्तियों ने मुझको वस्त्रहीन कर डाला,
दर्द को मेरे भुलाने,
गहरी नींद में मुझको सुलाने,
कफ़न बनके आया फिर से एक बार दुपट्टा,
मेर जिगरी यार दुपट्टा।