मेरा जिगरी यार दुपट्टा  Ravi Panwar

मेरा जिगरी यार दुपट्टा

Ravi Panwar

आया कितनी बार दुपट्टा,
मेरा जिगरी यार दुपट्टा।
 

माँ ने लपेटा, जब सर्दी ने घेरा,
पेड़ो पर झूला था, इसी में बचपन मेरा,
मेरे मुँह को पोछने,
आया कितनी बार दुपट्टा,
मेरा जिगरी यार दुपट्टा।
 

फिर मिला मुझको यौवन के किनारे,
मुस्कुरा रहा था उन कंधो के सहारे,
लाल हरा गुलाबी नीला,
रंग बिरंगा सुनहरा पीला,
लिपटा मेरे चेहरे से कितनी बार दुपट्टा,
मेरा जिगरी यार दुपट्टा।
 

आया पतझड़ का समय निराला,
पत्तियों ने मुझको वस्त्रहीन कर डाला,
दर्द को मेरे भुलाने,
गहरी नींद में मुझको सुलाने,
कफ़न बनके आया फिर से एक बार दुपट्टा,
मेर जिगरी यार दुपट्टा।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1456
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com