मैं  Ravi Panwar

मैं

Ravi Panwar

आज अकेले में मुझको कुछ याद आ गया,
सुनो तुम भी, वो कुछ मुझे भी सुना गया,
जिनके आने से महक जाते थे तर्रनुम मेरे,
वो आज फिर मेरे सामने आ गया।
 

क्या कहूँ उन्हें खबर तक नहीं,
मेरी पलकें न झपकीं, उठी उनकी नजर तक नहीं,
मेरी खुशी को बस उन्हीं में खोजता गया,
मैं सोचता बस उन्हें ही सोचता गया।
 

मैं नदी सा बहता गया समंदर की तलाश में,
उड़ता गया बेपरवाह, उस गहरे आकाश में,
गुलाब को छुआ तो एक कांटा चुभ गया,
बहुत दूर जाके मेरा रास्ता रुक गया।
 

फिर मेरा रास्ता बदलता गया,
और दिन तेज़ी से ढ़लता गया,
मेरी परछाई को मैं,
पत्थरों से कुचलता गया।
 

धीरे-धीरे वक़्त निकलने लगा,
मैं गिरता और फिर सम्भलने लगा,
एक दिन एक हसीन गुल खिल गया,
मेरे सवालों का मुझको हल मिल गया।
 

ख़ुशी भी अपनी खुश भी खुद होना है,
खुद के साथ ही मुझको हँसना और रोना है,
आज मेरे जहन से उनका वहम निकल गया,
रेत वो जैसे मेरी मुठी से फिसल गया।
 

मैं खुश था बहुत खुद को पाकर,
अकेलेपन में इस दुनिया को भुलाकर,
रौशनी में ऐसे अँधेरा जल गया,
जैसे मुझमें, मुझको आज मैं मिल गया।

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