साथ तुम्हारा VINAY KUMAR PRAJAPATI
साथ तुम्हारा
VINAY KUMAR PRAJAPATIसूरज मे कुछ रंग छिपे हैं,
ढूंढ के उन्हें दिखा दो तुम,
दिल के इस आकाश में,
एक इन्द्रधनुष बना दो तुम।
छाया कैसा रंग है ये,
बेरंग अब कुछ नहीं,
जीवन की इस राह में,
कोई मंजिल अब दूर नहीं।
साथ तुम्हरा सच्चा लगता है,
झूठा अब कोई शब्द नहीं,
मेरी परछाई तुम बन गए हो,
धूप से अब कोई बैर नहीं।
मंजिल का एक मुसाफिर था,
मैं ना प्यार के काबिल था,
दिल में यह ऐहसास जगाया,
मुझे प्यार के काबिल बनाया।
जीना ऐसे सीखा दिया है,
मुझे ग़मों से बचा लिया है,
जीवन में तुम आए हो जब से,
सपनों में तुम छाए हो तब से।
साँसो मे यूँ बस गए हो,
ज़िन्दगी मेरी बन गए हो,
मंजिल की अब राह हो तुम,
मेरी एक पहचान हो तुम,
गिरते को कोई दे सहारा,
कुछ ऐसा है साथ तुम्हारा।