परिवार  RATNA PANDEY

परिवार

RATNA PANDEY

जुड़ते हैं जब हाथों से हाथ,
परिवार संगठित हो जाते हैं,
ढ़ाई अक्षर प्रेम का हर दिल में जो लिखा जाए,
परिवार स्वर्ग से बन जाते हैं।
भाई-भाई में प्रेम अगर हो,
कोई दीवार जुदा नहीं कर सकती,
पिता के कंधों को मजबूती,
जिगर को ताकत है मिलती,
जवान बेटों को संग देख,
पिता की छाती चौड़ी हो जाती।
 

माँ की ममता को चार धाम का सुख,
घर में ही मानो मिल जाता,
सपनों का बागीचा हरा भरा हो खिल जाता,
बुरे वक्त में परिवार बंद मुट्ठी सा आपस में मिल जाता,
आँधी तूफानों से लड़ने का जज़्बा दिलों में हिम्मत बंधाता।
 

किन्तु टूटते बिखरते परिवार आज बढ़ रहे,
संगी साथी बिछड़ रहे।
स्वार्थ की चादर ओढ़े,
सब अपनी धुन में ही मस्त जी रहे,
प्यार की परिभाषा आज बदल रही है,
दुनिया मतलब के मलबे के नीचे दब रही है।
 

टूट रही हैं दीवारें प्यार की,
स्वार्थ और लालच की दीवार घरों को बाँट रही,
टूट रहे हैं प्यार के वादे, ईंटों की दीवारों से,
सूख रहे हैं पत्ते, सपनों के बागानों के।
जल रही चिताएँ प्यार के अरमानों की,
कागज़ की गुड़िया दिलों में बस रहीं,
प्यार की पतंगों की डोरी सारी कट रहीं।
 

हो गए चकनाचूर सपने माता-पिता के अरमानों के,
कि सपनों का महल बनाएँगे,
बनकर दादा दादी गूंजती किलकारियों के बीच,
अपना बुढ़ापा, खुशियों से बिताएँगे।
 

किन्तु दिलों के अरमां दिलों में ही रह गए,
फासले दिलों के दरमियान इतने बढ़ गए,
कि भाई भाई जैसा ना रहा, बेटा बेटे जैसा ना रहा,
प्यार की ताकत कागज़ों ने छीन ली,
जो सबका था मेरा तेरा हो गया।
बंट गई दौलत, ज़मीन के टुकड़े हो गए,
अपने बीवी बच्चों के संग,
परिवार पृथक हो गए।
रह गए एक कमरे में सिर्फ़ माता-पिता,
सबने दौलत माँगी, ज़मीन माँगी,
बूढ़े माता-पिता अपना नंबर कब आएगा सोचते रह गए,
बूढ़े माता-पिता अपना नंबर कब आएगा सोचते ही रह गए।

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