खेद नहीं है  SUBRATA SENGUPTA

खेद नहीं है

SUBRATA SENGUPTA

मुझे किसी से बैर नहीं है
न ही किसी से प्रीत,
दुश्मन मेरा कोई नहीं है,
न ही कोई मीत।


सबके साथ होते हुए भी
हूँ मैं एक अकेला,
इस दर्द को इस संसार में
सबने कभी न कभी झेला।


मरना कोई नहीं चाहता
जीना हर कोई चाहता,
घुट-घुट कर जीना,
क्या जीना कहलाता?
 

घुट-घुट कर मर कर जीना
जीना नहीं कहलाता,
बाधाओं से लोहा लेकर जीना ही
जीना कहलाता।

 
परवाह नहीं है धूप- छाँव की
समर्थता है स्वेद बहाने की,
कोई भी खेद नहीं है जीवन में,
समर्थ हूँ सदैव दर्द झेलने में।

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