फख्र है मुझे, कि मैं दीन हूँ  SUBRATA SENGUPTA

फख्र है मुझे, कि मैं दीन हूँ

SUBRATA SENGUPTA

फख्र है मुझे, कि मैं दीन हूँ,
किंतु परवश और न ही हीन हूँ।
मरतबा की मुराद नहीं है मुझे,
केवल सार्वजनीन की मुराद है मुझे।
फक्र है मुझे, कि मैं दीन हूँ,
किंतु परवश और न ही हीन हूँ।
 

संयम चाहता हूँ, अपने उजड्डपन और कर्कशता में,
सुहित चाहता हूँ, संसार के सभी प्राणियों में।
फक्र है मुझे, कि मैं दीन हूँ,
किंतु परवश और न ही हीन हूँ।
 

विरक्त हूँ, संसार की खोखली कृतज्ञता से,
किंतु विरक्त नहीं हूँ, जिज्ञासा और अनिंध जनों से।
फक्र है मुझे, कि मैं दीन हूँ,
किंतु परवश और न ही हीन हूँ।
 

संयम है मुझमे, आचरण, विनम्रता से,
और समर्थ हूँ, आघात सहने में।
केवल जिज्ञासा है, मानव की मानवता से,
मुझे कोई शिकायत नहीं है, इस संसार से।
फक्र है मुझे, कि मैं दीन हूँ,
किंतु परवश और न ही हीन हूँ।
 

मरतबा की मुराद नहीं है मुझे,
केवल सार्वजनीन की मुराद है मुझे।
फक्र है मुझे, कि मैं दीन हूँ,
किंतु परवश और न ही हीन हूँ।

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