नन्हे फ़रिश्ते RATNA PANDEY
नन्हे फ़रिश्ते
RATNA PANDEYलेकर कंधे पर बस्ते, निकल पड़े हैं नन्हे फ़रिश्ते।
लगता है कि ज़िंदगी की जंग लड़ने जा रहे हैं,
यह नन्हे मखमली हाथ, कलियों से नाज़ुक उँगलियाँ,
नहीं पकड़ पाती हैं कलम, हम क्यों इतनी जल्दी कर रहे हैं।
अल्हड़ अटखेलियों से प्रफुल्लित,
नन्हा छोटा सा दिमाग क्या समझ पाएग ,
फिर भी हम समझाए जा रहे हैं।
अरे ज़रा रुको, ठहर जाओ, जीने दो उन्हें,
मत छीनो उनका बचपन।
परिन्दे भी अपने बच्चों को तभी उड़ाते हैं,
जब वह उड़ने के लिए परिपक़्व हो जाते हैं।
झुक जाएँगे वज़न से कंधे उनके,
खो जाएगा बचपन बस्ते के अंदर।
उम्र भर यही सब तो करना है,
इस उमर पर यूं पहरे ना लगाओ।
याद करो अपना बचपन कितना रंगीला था,
पांच वर्ष तक माँ की बाहों में खेला था।
राजा रानी और परियों की कहानी सुनकर बीता था।
कितने प्यारे थे वो दिन जिन्हें याद करके
मन आज भी बच्चा बन जाना चाहता है।
हम अपनी जवानी में बचपन ढूंढ़ रहे हैं,
लेकिन उनका बचपन, बचपन में ही छीन रहे हैं।
नहीं आएगा लौटकर बचपन दोबारा।
ज़िंदगी की रफ़्तार बड़ी ही तेज़ होती है,
तनिक में ही सुबह से शाम होती है।
बीत जाती है ज़िंदगी, जीत हार
और सुख दुःख की कश्मकश में।
बचपन भी हवा के झोंके की तरह है,
बहने दो इसे स्वच्छन्द हवाओं के साथ।
जब हवा का रुख़ बदलेगा, हवा के ठंडे झोंके
आँधी और तूफ़ान में बदल जाएँगे,
और नन्हे फ़रिश्ते वक्त के साथ आगे निकल जाएँगे।
अभिभावकों से गुज़ारिश है,
बचपन को मशीनो की रफ़्तार न बनाओ,
बच्चों को बच्चा ही रहने दो उन्हें मशीन ना बनाओ,
ठहर जाओ संभल जाओ।
अपने विचार साझा करें
तेजी से बढ़ती तकनीकी, कम्प्यूटर, मोबाइल फोन और पढ़ाई ने आज सभी की ज़िंदगी बदल दी है। नन्हे बच्चे छोटी सी उम्र में भारी बस्ते कंधे पर लाद रहे हैं। स्पर्धा इतनी ज्यादा है कि आगे निकलने की होड़ है। माता पिता की महत्वाकांक्षाएँ हैं इसलिए बचपन मशीन बनता जा रहा है। किन्तु बचपन दोबारा नहीं आता और हर बच्चे को अपना बचपन जीने का मौका अवश्य ही मिलना चाहिए। अपनी कविता के माध्यम से मैंने यही बात दर्शाने का प्रयत्न किया है।