होली VIKAS UPAMANYU
होली
VIKAS UPAMANYUमै किसके संग खेलूँ अब होली,
जो अब किसी और की हो ली।
मँगाए थे उसने कभी कोरे कलश, गुलाल,
देख जिसको हो जाता था मेरा मन लाल।
अब वो मस्ती फाग बसंत कहाँ,
खो दिया या छोड़ दिया मैंने जाने कहाँ।
वो मेरा रंग तुम्हारा चेहरा,
वो दो नैनों का जादुई पहरा।
पता है मुझको अब रूठे रहोगे तुम,
लेकिन ये भी सच है, हो मेरा फाग बसंत तुम।
अंतर मन आज भी बसंत मेरा,
लेकिन ज़ुबाँ पर है बस एक बोली,
मै किसके संग खेलूँ अब होली,
जो अब किसी और की हो ली।