रणक  FARHAN KHAN

रणक

FARHAN KHAN

तु कुशल-रण माँ भारती का अश्व भी तिर सारथी का,
रक्त है व्याकुल सदा से प्राण दक्षिणा आरती का।
 

तेज है सूर्यों का संगम शक्ति आंशिक मारूति का,
वीरता ही शस्त्र तेरा हो नाश शत्रु स्वार्थी का।
 

गर्जना ज्वालामुखी तो अन्त अहंकार धारती का,
वाणी तेरी संयमित है गान भारत स्तुति का।
 

लौ से तेरी प्रस्फुटित कण उद्धार सारी प्रकृति का,
निश्चय निर्णय रौद्र तन्मय अब नाद होगा जागृति का।
 

भय व विस्मय का हो लोपन रक्षा मातृ संस्कृति का,
सहस्त्र दिव्यों का निरूपण जयकार तेरी आकृति का।
 

शब्दार्थ
कुशल-रण - योद्धा
तिर - तिरंगा
धारती - धारण करने वाला

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