छह माह की मित्रता SHUBHAM KALA
छह माह की मित्रता
SHUBHAM KALAसोचा ना था कि इतनी जल्दी फिर कलम और
मेरे शब्दों की मुलाकात होगी,
लेकिन मेरे दोस्त ज़िन्दगी के इस अनसुलझे
पड़ाव के बाद हमारी मुलाकात फिर होगी।
अभी तो जेहन में इसके सिवा कुछ नहीं कि
कैसे आने वाली सुबह और शाम होगी,
लेकिन वो कहते हैं ना समय किसी के लिए रुकता नहीं,
तो फिर नई शुरुआत की ही दरकार होगी।
पहले दिन पहले व्यक्ति तुम दिखे थे लैब में,
सोच रहा हूँ वो मुलाकात क्यों हुई होगी,
आखिर यह साझेदारी टूट गई कहीं इसमें
कोई कसर हमारी तो न रही होगी।
उस हँसमुख चेहरे और सूजबूझ व्यक्तित्व की,
कमी तो मुझे अवश्य महसूस होगी,
लेकिन कम समय में बने इस बेहतरीन रिश्ते को
पाने की ख़ुशी उससे कहीं बढ़कर होगी।
सिंघद्वार पहुँचते ही तुम्हारा फ़ोन कॉल,
अब इसके बिना कॉलेज पहुँचने में थोड़ा देर तो होगी,
और समय मिलते ही हम तीनों का कैंटीन की ओर जाना,
अब तुम्हारे बिना चाय की चुस्की भी तो अधूरी होगी।
दिन होते ही तुम्हारा शंकर जी से खाना मँगवाना,
अब अकेले टिफिन खाने की चाहत भी ना होगी,
कमरा खोलते ही तुम्हारा पानी लाना मेरा खाना लगाना और
अब तुम्हारी दो रोटी की भरपाई मुझसे ना होगी।
शाम छह बजे अच्छा अब मैं चलता हूँ देर हो जाएगी,
अब ये आवाज भी बगल से ना होगी,
परन्तु खुश हूँ इसलिए कि आने जाने का खतरा ख़त्म
और घर वालों को कोई चिंता ना होगी।
आसान नहीं था यह फैसला बहुत सोच समझने के बाद
तुमने हिम्मत जुटायी होगी,
किन्तु अब बेकार है और सब सोचना केवल इसके
की समय की यही माँग रही होगी।
अब अंत में इतना कहता हूँ तुम्हारा त्याग व्यर्थ नहीं,
बल्कि यह तो एक मिसाल होगी,
और तुम अपनी मेहनत यूँ ही जारी रखना,
कामयाबी तुम्हारे कदमों में होगी।
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यह कविता दो दोस्तों की दोस्ती पर आधारित है जिसमें यह दर्शाया गया है कि अचानक सिर्फ छह महीने बाद ही एक दोस्त अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए जिस रास्ते पर चल रहा होता है उससे अलग दूसरे बेहतर रास्ते पर निकल पड़ता है और इस पड़ाव में उसे अपने दोस्त को भी छोड़ना पड़ता है जिसके साथ पिछले छह महीने में काफी लगाव हो जाता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने उस दोस्त के अनुभवों को साझा किया है जो अभी भी वहीं स्थिर है और दोस्त के दूर हो जाने के बाद वह कैसा महसूस कर रहा है।