मेरी सोच VIKAS UPAMANYU
मेरी सोच
VIKAS UPAMANYUसोचता हूँ, अब इस दुनिया से बहुत दूर चला आया हूँ,
मुकद्दर और कर्मों को बहुत पीछे छोड़ आया हूँ।
जिंदगी की मंझदार में खड़ा हूँ अब अकेला,
अब लगता है हर एक दिल को मैं तोड़ आया हूँ।
छूट गए मेरे कुछ अपने, कुछ सपने,
रूठने और मनाने कि रीती को बहुत पीछे छोड़ आया हूँ।
सोचता हूँ, अब इस दुनिया से बहुत दूर चला आया हूँ,
मुकद्दर और कर्मो को बहुत पीछे छोड़ आया हूँ।
ऐ-जिंदगी अब तू ही बता तेरा इरादा क्या है,
मैं तो अपने जीने कि राह पीछे छोड़ आया हूँ।
शायद भटक चुका हूँ अपने पथ से,
इसलिए आज सभी रिश्तों को बहुत दूर छोड़ आया हूँ।
सोचता हूँ, अब इस दुनिया से बहुत दूर चला आया हूँ,
मुकद्दर और कर्मो को बहुत पीछे छोड़ आया हूँ।
है उदास बहुत ‘उपमन्यु’ इस दुनिया से,
क्योंकि साथ कुछ अपनों का, मै छोड़ आया हूँ।
काश कोई तो होता, जो रोक लेता मुझको,
सपनों की हवेली को आज रुखसत कर आया हूँ।
सोचता हूँ, अब इस दुनिया से बहुत दूर चला आया हूँ,
मुकद्दर और कर्मो को बहुत पीछे छोड़ आया हूँ।