गाँव Ravi Panwar
गाँव
Ravi Panwarगाँव आज भी गाँव हैं,
अब भी बैठते हैं बूढ़े वो चौपाल पर,
रखती हैं औरते पुरानी चीजे संभाल कर,
सुबह हँसती है हवा जहाँ,
वो गाँव हैं।
धूप के साथ खेलती,
पेड़ों की छाँव हैं,
सब एक साथ छोटे-बड़े,
गेंहू काटते, भूसा ढोते।
छाछ गुड़ वो आज भी जबान में,
स्वाद कहाँ होता है किसी पकवान में,
फिर आ गई पड़ोसन
दाल के बहाने से,
कि भगवान आए हैं घर पर।
मेहमान के आने से
बारिश का अपने पीहर में आना,
कागज की नाव का
बस था एक बहाना,
नाम अनोखे चम्पा चमेली,
गाँव में मिलती है ऐसी सहेली।
एक गोरी गाय मेरे आंगन में,
एक गांव मेरे आंगन में,
सावन भादों के गीत,
जहाँ गूँजते हैं हर आंगन में,
मैं वही हूँ, और वही नन्हे पाँव हैं,
गाँव आज भी गाँव हैं।