ज़िंदगी प्रश्न चिन्ह है  SUBRATA SENGUPTA

ज़िंदगी प्रश्न चिन्ह है

SUBRATA SENGUPTA

ज़िंदगी प्रश्न चिन्ह है,
कब, क्यों, क्या, कैसे और कहाँ?
इन्हीं सवालों में उलझा है सारा जहाँ।
जोड़, घटाव, गुना और भाग में,
प्रतिदिन उलझे रहते हैं इन सवालों में,
फिर भी असफल हैं जीवन के गणित में।
ज़िंदगी प्रश्न चिन्ह है,
कब, क्यों, क्या, कैसे और कहाँ?
इन्हीं सवालों में उलझा है सारा जहाँ।
 

तुझे क्या मिला और क्या करना है?
कौन देगा और क्यों देगा?
उसे कब मिलेगा और कैसे मिलेगा?
वह कौन है और कहाँ है?
इन्ही प्रश्नों के ढ़ेर में दबकर,
लोहार की धुकनी की तरह धुकने लगती है ज़िंदगी।
 

इन्ही प्रश्नोत्तरों के समंदर में तैरकर,
गोते लगाते डूबने लगती है ज़िंदगी।
ज़िंदगी प्रश्न चिन्ह है,
कब, क्यों, क्या, कैसे और कहाँ?
इन्हीं सवालों में उलझा है सारा जहाँ।
 

यदि जोड़ना ही है तो
इंसान से नाता जोड़ो,
और घटाना है तो
लालच, हिंसा, बेईमानी और ईर्ष्या को छोड़ो।
गुणा के सवालों में परोपकार की गुना करो,
भाग की क्रिया में मानवता को बाँटा करो।
ज़िंदगी प्रश्न चिन्ह है,
कब, क्यों, क्या, कैसे और कहाँ?
इन्हीं सवालों में उलझा है सारा जहाँ।

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