मज़ा आता है Ravi Panwar
मज़ा आता है
Ravi Panwarपिघल जाए मोम, तो बाती को जलने में मज़ा आता है,
साथ हो अपने तो सूरज के ढलने में मज़ा आता है,
और चुनौतियों का शौक होता है जिन्हें,
उन्हें पत्थरों पर चलने में मज़ा आता है।
नौरस के दिनों की उफ़
नींद को भी सोने में मज़ा आता है,
और वो खुशी के होते हैं,
हर एक आँसू को रोने में मज़ा आता है।
कायर हैं जो बदनसीब,
उन्हें हर पल डरने में मज़ा आता है,
है मोहब्बत अगर वतन के लिए,
तो हर शहीद को मरने में मज़ा आता हैं।
पागल दरअसल पागल नहीं होता,
उसे खुद से उलझने में मज़ा आता है,
खुदा सा दोस्त मिल जाए अगर,
तो गिर के सम्भलने में मज़ा आता है।
उतार सका क़र्ज़ माँ का अगर
तो मुझको बिकने में मज़ा आता है,
क्या-क्या लिख देती है रवि की कलम,
सच कहूँ तो उसको लिखने में मज़ा आता है।