जाना फिर अकेले है Vinay Kumar Kushwaha
जाना फिर अकेले है
Vinay Kumar Kushwahaज़िन्दगी है चार दिनों की
फिर क्यों ये झमेले हैं,
आए थे जग में अकेले
जाना फिर अकेले है।
इंसान है हैवान न बन
छल-दंभ की दुकान न बन,
कौन है अपना कौन पराया
सब दुनिया वाले तेरे हैं।
कैसी हो गई जग की रीत
दिलों से गायब है प्रीत,
कोई कहीं महफूज नहीं
बस षड्यंत्रों के मेले हैं।
ढोंग का लिबास त्याग
अर्थ की तू प्यास त्याग,
आज हैं गम कल फिर खुशी
ये तो जिंदगी के फेरे हैं।
मत बन तू निष्ठुर प्राणी
कुछ तो बोलो मीठी वाणी,
जी लो अब खुशियों का हर पल
जो सबसे अलबेले हैं।
ज़िन्दगी है चार दिनों की
फिर क्यों ये झमेले हैं,
आए थे जग में अकेले
जाना फिर अकेले है।