ख़ामोशी VIKAS UPAMANYU
ख़ामोशी
VIKAS UPAMANYUपैमाने से न नापिए
मेरे नशे का अंदाज़ा,
मैं वो दरिया हूँ
जो अक्सर खामोश रहता है।
निकलेंगे मेरे नीर
तेरी आँखों से एक दिन लहू बनकर,
तू अभी से अपना दामन गीला न कर।
दर्द छिपाए तमाशा बन कर बैठे हैं हम,
लेकिन तुम जब भी पूछोगे
खैरियत ही कहेंगे हम।
तस्वीर साफ़ है तेरी
लेकिन नज़र हमारी धुंधली हो गई
क्या करें,
तू बिना कुछ सोचे समझे बेरुखी हो गई।
तोड़ी बन्दिशों कि जंजीरे,
तो रिश्तों की दीवारें ऊँची हो गईं,
उसकी एक मुस्कराहट
मुझपर कितनी हावी हो गई।
लगता है सांसारिक रचना में लिप्त हो गया हूँ मैं,
कितना लोभी,
मोह वित्रप्त भक्षक हो गया हूँ मैं।
भूल चुका है सारे गम
बस उस एक खुशी के लिए खड़ा है ‘उपमन्यु’,
देखो ज़िन्दगी के इस मोड़ पर कितना अड़ा है ‘उपमन्यु’,
कोई गम नहीं होगा,
अब इस ज़िन्दगी में
इसलिए ख़ामोशी में जीने लगा है ‘उपमन्यु’।