ख्याल रखना Arun Mishra
ख्याल रखना
Arun Mishraशौर्य शय्या मे पड़ी
अन्तिम क्षणों के शब्द थे,
छीजी पड़ी थी साड़ी उसकी
लेकिन अलौकिक दर्प थे।
दंडधर थे सामने
तनु त्यागने का वक्त था,
अधरों पर शब्दकोष एवं
ममता का मार्मिक सत्य था।
ख्याल रखना बेटा तुम
इस होड़ के संसार में,
भूल कर भी न भटकना
संताप के व्यभिचार में।
कितना भी ऊँचा शीश हो
उन्नति का आशीष हो,
व्यवहार की बगिया तुम्हारी
विनम्रता से अभिसींच हो।
क्रोध नीरमय बने
वाणी निर्मम निर्भीक हो,
कटु रास्तों की परिधियों में
अभिमन्यु भाँति जीत हो।
अन्तिम यही पुकार है
सेवा तुम्हारा भाव हो,
जा रही देह त्यागने
पर जीवित मेरे संस्कार हो।