हमारा रत्नम  ABHISHEK KUMAR GUPTA

हमारा रत्नम

ABHISHEK KUMAR GUPTA

दूर तू इतना चला गया कि कैसे तुझे बुलाऊँ,
बोल ज़रा इस पागल दिल को क्या कहकर समझाऊँ।
आँखों से अश्कों के समंदर बहते हैं बिना रुके,
लौट के आजा लाल तू हमसे चला गया क्यों रूठ के।
 

कैसी वो मनहूस घड़ी थी
जब घर से था निकला,
लौट आऊँगा कुछ घंटो में
तू माँ से था बोला।
इंतज़ार हम करते रह गए
तू चला गया मुख मोड़ के,
लौट के आजा लाल तू हमसे चला गया क्यों रूठ के।
 

माँ तेरी बेसुध हो कर
सब कुछ भूल गई हैै,
बेकल हो कर वो मुझसे
बस यह पूछ रही हैे,
कब आएगा रत्नम मेरा ले आओ उसे,
लौट के आजा लाल तू हमसे चला गया क्यों रूठ के।
 

मिले खुदा तो पूछूँ कि
किन कर्मों की ये सज़ा है,
दादी का दिल रो-रोकर
दादा से ये बोल रहा है,
पहले बेटा छीन लिया अब
पोता भी गया रूठ के
लौट के आजा लाल तू हमसे चला गया क्यों रूठ के।
 

काश तेरी बहनों का सपना
एक दिन सच हो जाए,
इस रक्षाबंधन पर उनका
भाई उन्हें मिल जाए।
सुबह-शाम करती हैं विनती
हाथों को बस जोड़ के
लौट के आजा लाल तू हमसे चला गया क्यों रूठ के।
 

उस ईश्वर से करता हूँ मैं
अब बस इतनी विनती,
इस विपदा को सहने की तू
देना उनको शक्ति।
और किसी भी पूत को माँ से
लौट के आजा लाल तू हमसे चला गया क्यों रूठ के।
 

आज हमारा प्यारा रत्नम चला गया हमें छोड़ के,
आज हमारा प्यारा रत्नम चला गया हमें छोड़ के।

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