बेनाम रिश्ता VIKAS UPAMANYU
बेनाम रिश्ता
VIKAS UPAMANYUनाम जब भी तुम्हारा आता है
ये दिल सुन्न सा हो जाता है,
माना तुम से कोई अब रिश्ता नहीं
पर कम्बख्त दिल बागी हो जाता है।
ये बेनाम सा रिश्ता जो तुमसे पनपा है
जैसे भंवर कोई कुमुदनी पर लिपटा है,
खुशबू जो तेरे प्यार की थी
उससे आज भी तन-मन मेरा महकता है।
वो डायरी और सूखे फूल तो एक बहाना है
इरादा तो बस हर पल तुम्हें याद करना है,
पता है तुम्हें कोई याद नहीं करता ‘उपमन्यु’
मुझे तो बस तुम्हारे ख्यालों में आना है।
करता हूँ अक्सर कोशिश तुम्हें भूल जाने की,
न जाने क्यों उस मासूम चेहरे में खो जाता हूँ,
और की कोशिश जब भी तुम्हें अपना बनाने की
न जाने क्यों उतना ही दूर चला जाता हूँ।
दूर हो गया हूँ तुमसे फिर भी कोई गम नहीं है,
वो तुम्हारी मुलाकातें किसी रुखसत से कम नहीं है,
क्या हुआ जो तू नहीं मिला मुझको,
तेरी हर एक मुलाक़ात किसी जन्नत से कम नहीं है।
पता है अब वो कभी नहीं लौट के आ पाएँगे,
जिसकी यादों में खर्च कर दी हमने ज़िन्दगी अपनी,
ढूँढोगे तो वही मिल पाएँगे जो कभी खो गए थे,
बदलने वाले अब कभी नहीं मिल पाएँगे।