चींटी ABHISHEK KUMAR GUPTA
चींटी
ABHISHEK KUMAR GUPTAचींटी काली चिपटी लिमटी सिमटी
देखो एक लम्बी कतार चली,
कुछ अन्न लिए अपने संग में
सौ योजन करती पार चली।
कभी उपर को कभी नीचे को
कभी आगे को कभी पीछे को,
जैसे चढ़ती ये पहाड़ चली
हाय ! देखो इनका बल साहस
वीरों को भी देने मात चली।
खुद हैं देखो ये छोटी सी पर
आसमान को छूने चली हों,
हो प्रविष्ट जो नासिका में
तो गज के लेती प्राण चली।
जो खुद को बलशाली समझते हैं
उन्हे देने आज ये ज्ञान चली,
कुछ अन्न लिए अपने संग में
सौ योजन करती पार चली।