हमारी अधूरी कहानी  VIKAS UPAMANYU

हमारी अधूरी कहानी

VIKAS UPAMANYU

मेरा अधूरापन है सब उसकी ही निशानी,
छूट चुके हैं वो सपने अब उस मोड़ पर,
लिख रहा हूँ उसकी मासूमियत अपनी जुबानी,
ख़्वाहिशें अधूरी हैं कुछ अधूरे से हैं अब हम,
जो बन चुकी है अब हमारी अधूरी कहानी।
 

चुराए हैं मैंने तेरे ही नैनों के अश्कों से अल्फाज़
वो चंद लम्हे थे ‘उपमन्यु’,
पर याद है आज तक वो पहली मुलाक़ात
वो पान वाले कि दुकान,
वो तेरा गिटार वाला साज,
याद तो तुझको भी होगी
घर के पास वाली वो मुलाक़ात।
 

मै नहीं रूठा कभी तुमसे कि खुद से खफा हो जाऊँ,
पर तुमको तो हवाओ संग गुजर जाने का अरमान था,
वो तेरे इश्क का असर था या मेरी चाहत का गुमान था,
रूह में तेरी उतर जाना वो हमारा ही फरमान था।
 

उदास तो हूँ एक तेरे चले जाने से,
पता है नहीं आ सकता अब तू किसी भी बहाने से,
तस्सबुर-ऐ-अरमान दिल के दिल में रह गए,
टूटा काँच बन चुका हूँ एक तेरे रुसवा हो जाने से।
 

सुर्ख आँखों से जब भी देखता हूँ तुमको,
दिल-ऐ-आग लग जाती है मेरे मन को,
जल जाता है मेरे मन का चितवन,
जब-जब नहीं देखता है ये तुमको।
 

अब क्या रिश्ता है तेरा-मेरा ये मैं नहीं जानता,
है वो मेरा रब-ऐ-खुदा ये वो ही नहीं जानता,
हसरत नहीं है अब मेरी केवल तुम्हे पाने की,
ख्वाहिश-ऐ-दिल है बस तुम्हे चाहने की।
 

मेरा अधूरापन है सब उसकी ही निशानी,
छूट चुके हैं जो वो सपने उस मोड़ पर,
लिख रहा हूँ उसकी मासूमियत अपनी जुबानी,
ख़्वाहिशें अधूरी हैं कुछ अधूरे से हैं अब हम,
जो बन चुकी हैं अब हमारी अधूरी कहानी।

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