दिन बीते लम्हें गुज़रे  Vivek Tariyal

दिन बीते लम्हें गुज़रे

Vivek Tariyal

दिन चढ़के सूरज उतरा फिर चंदा नभ चमका गया,
जीवन तरंग भी उठी गिरी और संग समय चलता गया,
मैं खड़ा देखता रहा लिए यादों के घड़े को हाथों में,
दिन बीते लम्हें गुज़रे और क्षण अंतिम था आ गया।
 

दृग नीर बहा उन यादों पर मन बारम्बार दहकता है,
स्वप्नों में उसे पाने को व्यथित हो हृदय बहकता है,
अंतिम आलिंगन देने को चाहा उठना तब शिथिल पड़ा,
छाने लगा तम आँखों में यम पाश जकड़ता चला गया,
दिन बीते लम्हें गुज़रे और क्षण अंतिम था आ गया।
 

चाहा अधरों ने कुछ कहना साथ न देते थे अक्षर,
मौन पड़े चाहा देना उनको जज़्बाती हस्ताक्षर,
कसक रह गई अभिव्यक्ति में आजीवन कह पाए नहीं,
समय भी क्षण भर को ठहरा फिर राह मोड़ता चला गया,
दिन बीते लम्हें गुज़रे और क्षण अंतिम था आ गया।
 

भावों के भवसागर में ले रहा हिलोरें व्याकुल मन,
अपनों के भविष्य को लेकर चिंता से था आकुल मन,
जिनके स्वप्नों को पूरा करने लेकर विश्वास चला,
आज उन्हीं अपनों को मैं मंझधार छोड़ता चला गया,
दिन बीते लम्हें गुज़रे और क्षण अंतिम था आ गया।
 

पंच तत्वों से बना शरीर फिर इनमें मिल जाएगा,
रह जाएँगे यादें बनकर काम अमर हो जाएगा,
इस शरीर का साथ छोड़ निकला जब अगली मंज़िल को,
मुड़कर देखा एक बार फिर हाथ जोड़ता चला गया,
दिन बीते लम्हें गुज़रे और क्षण अंतिम था आ गया।

अपने विचार साझा करें




3
ने पसंद किया
2394
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com