वृक्ष की पुकार  RATNA PANDEY

वृक्ष की पुकार

RATNA PANDEY

वृक्ष माँग रहा ऋण वापस
जो उसने हमें दिया था,
निरंतर कर्त्तव्य पथ पर चलकर
वह हमारे लिये ही तो जिया था।
वृक्ष अटल निरंतर देता रहता
शुद्ध हवा के झोंके,
जी ले जीवन तू मानव
मेरे दिए इस ऋण से,
वक़्त आयेगा तब माँगूँगा
अपना उधार मैं तुझसे।
 

आज दे रहा अपना सब कुछ
इसी उम्मीद में तुम को,
कल गर मैं मुश्किल में आ जाऊँ
तुम संभालोगे क्या मुझ को।
गुज़र गए अब वो ज़माने
जब मैं निडर खड़ा रहता था,
डर लगता है मुझ को
अब कोई पास मेरे गर आ जाए,
मार कुल्हाड़ी मेरे तन को
मृत्यु लोक ना पहुँचाए।
 

हे मानव माँग रहा उधार मैं अपना
वापस मुझे लौटा दो,
करके कोई  जतन हमें
इन खूनियों से बचा लो।
कट रहे निरंतर घोंसले
कम हो गई पंछियों की आबादी,
डर लगता है उनको
जिस डाल पर बैठे,
कहीं हो ना जाए उसकी बर्बादी,
चुकाना पड़ेगा ऋण वापस उनका
आ गई है अब वह बारी।
 

वृक्ष लगाओ हर गली मोहल्ले
आया समय है भारी,
ऋण वापस करने की
कर लो अब तैयारी।
वृक्षों का लहराना,
पंछियों का चहकना,
फिर हो जाएगा जारी,
दम घुटते मानव को
मिलेगी पुनः शुद्ध हवा में
जीने की खुशहाली।

अपने विचार साझा करें




3
ने पसंद किया
2023
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com