लिहाज़ Yogeogendra Raj Sharma
लिहाज़
Yogeogendra Raj Sharmaआज की उलझन है क्या सौदा सही किया,
क्या लिया, किससे लिया, कितना, किसे दिया।
दूर करने में रहे घर के अंधेरे उम्र भर,
कहतें हैं ये "यार" जीवन हमने नहीं जिया।
पंडिताई पढ़ चुके औऱ मानते भी हैं,
ढ़ाई अक्षर ना पढ़ा पोथों को पी लिया।
चार पल की ज़िंदगी का एक पल ख़त्म,
बस सुहानी शाम के ख़ातिर "#योगी" जिया।
सत्य से भागे हमेशा खुद को भी वाक़िफ़ नहीं,
रूप लेकर के उधारी प्यार जो किया।
बरसों बचा के रखा था हमने भी एक दिल,
आज भी साबुत पड़ा तुमको नहीं दिया।
नाम लिखने में तेरा थम जाती है ये लेखनी,
इतना लिहाज़ "#योगी" ने खुद का नहीं किया।