प्रकृति में मैं Dr. Shachi Negi
प्रकृति में मैं
Dr. Shachi Negiप्रकृति के बीच,
मेरे अंदर भी एक प्रकृति है।
चिड़ियों का कलह
मेरे बाहर भी है, मेरे अंदर भी,
एक द्वंद्व जो छिड़ा है
इस वक़्त बादलों और सूरज के बीच
मेरे बाहर भी है, मेरे अंदर भी।
चाहे ये बादल कितने ही काले और घने हों,
ये आज भी हमेशा की तरह, सूरज से हार जाएँगे,
इन्हें सूरज की गर्मी में पिघलना ही है,
चाहे कितनी भी मुश्किलें हों,
मुझे चलना ही है।
बस ज़रूरत है सूरज सा हौसला रखने की,
बस ज़रूरत है अपने अंदर की आग को जलते रहने की,
मेरे अंदर के प्रकाश को
हमेशा रौशन रखने की,
इन चिड़ियों की तरह हमेशा चहचहाते रहने की,
चाहे लाख बेदर्द झोंके हों हवा के,
हमेशा अनंत ऊचाईयों को छूते रहने की।