घायल हो आते घर aniket sachan
घायल हो आते घर
aniket sachanसीने में जबरन जलन दबाए
उसके हाथों से मार खाए,
सूरत को काली करवाके
आज वो फिर घर पर आए।
नहीं ताकत जब बदन में
है बुढापा जब यौवन में,
गए थे लड़ने क्यों तुम उससे
है बलशाली जो अति तुमसे।
तुममे थोड़ी शर्म है क्या
धैर्य भी विहीन है क्या,
न पुरुषार्थ रत्ती भर का
बुद्धि का भी अंत है क्या।
कह रोज़ सुबह ये कटु कथन
आदर्शों को समझाता मन,
क्यों रोज़-रोज़ छलनी होकर
शासन से हो आ जाते घर।